लखनऊ
लखनऊ को नबाबों की नगरी के नाम से जाना जाता है, जो उत्तर प्रदेश की राजधानी है और गोमती नदी के तट पर स्थित है। इस शहर का इतिहास सूर्यवंशी राजवंश के काल का है। लखनऊ की स्थापना नवाब आसफ - उद - दौला द्वारा की गई थी, उन्होने इसे अवध के नवाबों की राजधानी के रूप में पेश किया था। वास्तव में, नवाबों ने इस शहर को एक विनम्र संस्कृति के अलावा शानदार पाक शैली भी प्रदान की है जो वर्तमान समय में पूरी दुनिया में विख्यात है। लखनऊ उर्दू, हिंदुस्तानी और हिन्दी भाषा का जन्म स्थान है और इस शहर का भारतीय कविता और साहित्य में काफी योगदान भी रहा है। पूरे देश में इस शहर में सबसे उम्दा कारीगर मिलते हैं और यहां की चिकनकारी का काम पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है I
बड़ा इमामबाड़ा
बड़ा इमामबाड़ा, एक विशेष धार्मिक स्थल है। इसे आसिफ इमामबाड़ा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसे 1783 में लखनऊ के नबाव आसफ - उद - दौला द्वारा बनवाया गया था। इमामबाड़ा, लखनऊ की सबसे उत्कृष्ट इमारतों में से एक है। एक परिसर में एक श्राइन, एक भूलभूलैया - यानि भंवरजाल, एक बावड़ी या सीढियोंदार कुआं और नबाव की कब्र भी है जो एक मंडपनुमा आकृति से सुसज्जित है। इस इमारत की डिजायन की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें कहीं भी लोहे का इस्तेमाल नहीं किया गया है और न ही किसी यूरोपीय शैली की वास्तुकला को शामिल किया गया है। इस इमारत का मुख्य हॉल 50x16x15
मीटर का है जहां छत पर कोई भी सपोर्ट नहीं लगाया गया है। बड़ा इमामबाड़ा को यहां की भूलभूलैया के लिए जाना जाता है जहां कई भ्रामक रास्ते हैं जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और इनमें कुल 489 दरवाजे हैं।
छोटा इमामबाड़ा
छोटा इमामबाड़ा या
छोटा श्राइन, लखनऊ में स्थित एक भव्य स्मारक है। इसे हुसैनाबाद इमामबाड़ा भी कहा
जाता है। इस इमामबाड़ा को 1838 में मोहम्मद अली शाह के द्वारा बनवाया गया था, जो
अवध के तीसरे नवाब थे। यह इमामबाड़ा, लखनऊ के पुराने क्षेत्र चौक के पास में ही स्थित
है। इस इमामबाड़े को नवाब के अन्तिम विश्राम स्थल यानि मकबरे के रूप में बनाया
गया है। इस स्थल पर नवाब की और उनके परिवार के अन्य सदस्यों की कब्र बनी हुई
है। छोटा इमामबाड़ा की डिजायन में गुम्बद पूरी तरह से सफेद है और बुर्ज
व मीनारें चारबाग पैटर्न पर आधारित हैं। इमारत में किया गया कांच का काम, वास्तुकला
में फारसी शैली को स्पष्ट दर्शाता है। इस इमारत में फारसी शैली का व्यापक उपयोग
हुआ है। यहां की दीवारों पर अरब में लिखावट की गई है जो वाकई में बेहद खास और
सुंदर है।
छोटा इमामबाड़ा को पैलेस ऑफ लाइट कहा
जाता है क्योंकि त्यौहारों के दौरान इसे अच्छी तरह सजाया जाता था। इस स्मारक
में लगी झूमरें, बेल्जियम से आयात करके लाई गई थी, जिन्हे इंटीरियर के लिए
मंगवाया गया था।
रूमी दरवाजा
रूमी दरवाजा को तुर्कीश द्वार के नाम से भी जाना जाता है, जो 13 वीं शताब्दी के महान सूफी फकीर, जलाल-अद-दीन मुहम्मद रूमी के नाम पर पड़ा था। इस 60 फुट ऊंचे दरवाजे को सन् 1784 में नवाब आसफ - उद - दौला के द्वारा बनवाया गया था। यह द्वार अवधी शैली का एक नायाब नमूना है और इसे लखनऊ शहर के लिए प्रवेश द्वार के रूप में जाना जाता है। इस गेट के ऊपर नवाबों के युग में एक लैम्प रखी गई थी, जो उस युग में रात के अंधेरे में रोशनी प्रदान करती थी। यह जगह और भी लुभावनी हो जाती है जब इस द्वार पर बनी मेहराबों के पास में लगे सुंदर से फव्वारों से कली के आकार में पानी गिरता है।
फिरंगी महल
फिरंगी चौक, लखनऊ में विक्टोरिया रोड़ और चौक के बीच में स्थित है। इस भव्य स्मारकीय इमारत का नाम इसके पीछे एक तथ्य पर पड़ा है। कहा जाता है कि यह चौक यूरोपियन लोगों के कब्जे में था जिन्हे फिरंगी कहा जाता था और इसी कारण इसे फिरंगी चौक के नाम से जाना जाता है। वास्तव में इस चौक का नाता एक फ्रैंच व्यवसायी, नील के साथ था, जो यहां अन्य फ्रैंच व्यवसायियों के साथ मुगल बादशाह औरंगजेब के शासन काल के दौरान रहता था।
इस
महलनुमा निवास पर पहले विदेशा स्वामित्व था, जिसे बाद में एक शाही फरमान के बाद सरकार ने जब्त कर लिया था। बाद में इसे इस्लामी मामलों पर सम्राट के सलाहकारों मुल्लाह असद बिन कुताब शहीद और उसके भाई मुल्लाह असद बिन कुताब उद्दीन शहीद को हस्तांतरित कर दिया गया।
इन
दोनों भाईयों ने इस घर को एक बड़े इस्लामिक संस्था में बदल दिया, उनके स्टैचू को कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी ऑफ इंग्लैंड के साथ तुलना भी किया गया। महात्मा गांधी ने भी अपना कुछ समय फिरंगी महल में बिताया है और जिस कमरे में वह ठहरे थे, वहां उनसे जुड़ी यादों को सजाकर रखा गया है। फिरंगी महल का इस्लामी संस्कृति और परंपरा के संरक्षण में अभूतपूर्व योगदान रहा है।
गौतम बुद्ध पार्क
गौतम बुद्ध पार्क, लखनऊ के कई ऐतिहासिक
स्मारकों और पार्को में से एक है जो इन सभी में से सबसे नवीनतम है। यह माना जाता
है कि गौतम बुद्ध ने अपने जीवन का अधिकाश: समय उत्तरप्रदेश में बिताया था और लखनऊ
का प्राचीन नाम नखलऊ हुआ करता था, जो भगवान बुद्ध के नाखून के नाम से व्युत्पन्न
हुआ था।
इस पार्क को लखनऊ विकास प्राधिकरण
द्वारा 1980 में दस एकड़ के क्षेत्रफल में विकसित किया गया था। इस पार्क में भगवान
बुद्ध की संगमरमर की विशाल प्रतिमा लगी हुई है। यह पार्क रूमी दरवाजा, बड़ा इमामबाड़ा और शहीद स्मारक
के पास में लखनऊ के पुराने शहर में स्थित है और अपने शांत वातावरण और उत्तम
सौंदर्य के लिए पर्यटकों के मध्य खासा प्रसिद्ध है।
इस पार्क में कलात्मक उद्यान, फव्वारे,लैम्प
पोस्ट, बेंच, रेलिंग्स, कई तरह के पेड़ - पौधे और कई छोटी - छोटी मूर्तियां भी
शामिल हैं। यह पार्क लखनऊ आने वाले
पर्यटकों के अलावा स्थानीय निवासियों के लिए भी पसंदीदा स्थल है। यहां आकर बच्चे
खेल सकते है और बड़े लोग मनोरंजक गतिविधियों का आंनद उठा सकते हैं।
वैसे यहां बच्चों के खेलने के लिए कई
प्रकार के गेम उपलब्ध है, साथ ही साथ कई प्रकार के झूले भी यहां झूले जा सकते
हैं। यहां की कृत्रिम नहर में पैडल बोटिंग भी की जा सकती है।
हजरतगंज मार्केट
हजरतगंज मार्केट, लखनऊ का केंद्र है जो शहर के परिवर्तन चौक क्षेत्र में स्थित है और लखनऊ का सबसे प्रमुख शॉपिंग कॉम्प्लेक्स है। इसे 1810 में अमजद अली शाह ने बनवाया था यह मार्केट पहले क्वींस मार्ग पर स्थित था जहां अंग्रेज अपनी गाडि़यां और बग्घी चलाने जाया करते थे। समय बीतता गया और वर्तमान में यह शहर की सबसे प्रमुख सड़क और बाजार है I हजरतंगज बाजार में कई छोटे- छोटे बाजार, शॉपिंग मॉल, उत्तम दर्जे के शोरूम, होटल, पीवीआर थियेटर, रेस्टोरंट, फूड कोर्ट और कई नामचीन कार्यालय भी हैं। आप इस बाजार में आकर सभी चीजों को खरीद सकते हैं जिनमें नवीनतम कारें, ज्वैलरी, प्राचीन वस्तुएं, हस्तशिल्प सामान व अन्य वस्तुएं आराम से खरीदी जा सकती हैं। लखनऊ के खास चिकेन के कपड़े भी यहां से खरीदे जा सकते हैं।
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