अतिथि
देवो भव: इस
मूल मंत्र को
पर्यटन का आधार
भारत में पर्यटन
को बढ़ावा देने
का सरकार
पूरा प्रयास कर
रही है . भारत
वैसे भी विविधताओं
भरा देश है.
यहाँ कई प्रकार
की भूगोलिक सरंचना, मौसमी विविधताएँ,
सांस्कृतिक विविधताएँ एवं रीती
रिवाजो में भिन्नताएँ
देखने को मिलती
है. भारत कई
धर्मो की जन्मस्थली
भी है. इसलिए
स्वाभाविक है की
अनेक धर्म के
लोग भी यहाँ
निवास करते है.
देश को मुख्यत:
दिशाओं के आधार
पर बांटा गया
है, जैसे उत्तरी
भारत, दक्षिण भारत,
पूर्वी और उत्तर पूर्वी भारत तथा
पश्चिमी भारत. ये सब
न केवल क्षेत्रीय
भिन्नता प्रस्तुत करते है
अपितु एक ही
राष्ट्र में कई
प्रकार की जीवन
शैली को भी
दर्शाता है. ये
जीवन प्रवाह भारत
में कई प्रकार
के भोजन का
भी आधार है.
मतलब साफ़ है
की भारत में
व्यंजन्नो में भी विविधताओं की कमी नहीं
है. ये सब उपरोक्त तथ्य इस बात की और ध्यान आकर्षित करते है की पर्यटकों के लिए भारत
में विविधताओं की कमी नहीं है. इस बदलते परिवेश में प्रत्येक व्यक्ति जिसकी आधारभूत
आवश्कताए पूरी है एवं अपने जीवन में खुशहाल है, वो कुछ समय के लिए अपनी व्यस्त जीवन
शैली से छुट्टी कर घुमने की इच्छा रखता है. ये बात लोगो की आय पर निर्भर करती है की
वो किस स्थान पर जाना चाहते है? बस यहाँ से पर्यटन की शुरुआत हो जाती है. जब हम पर्यटन
की बात करते है तो मानव मष्तिष्क में एक अलग ही उत्तेजना और उत्साह प्रवाहित होने लगता
है. पर्यटन की परिभाषा लोगो के लिए केवल सैर- सपाटे तक ही सीमित है. मुझे लगता है की
पर्यटकों को इससे ज्यादा समझने की आवश्यकता भी नहीं है. ये काम हम जानकारों के लिए
रहने देते है.
भारत
में घरेलु पर्यटक एवं
विदेशी पर्यटक दोनों
ही बड़ी संख्या
में पर्यटक स्थलों
को देखने के
लिए निकलते है.
भारत में घरेलु
पर्यटकों की संख्या
काफी बड़ी है
( चिंता करने की
आवश्यकता नहीं है
ये लेख आंकड़ो
पर आधारित नहीं
है ). ये होना
भी स्वाभाविक है.
इसकी वजह है
लोगो की बदती
आय के साधन
एवं जीवन स्तर
में वृद्धि का
होना है. घरेलू पर्यटकों का एक
बड़ा हिस्सा धार्मिक
यात्राओं से सम्बंधित
है, जो सोभाग्य
से औसत आय
और औसत
से कम आय वाले
लोगो को भी
इस रूप के
पर्यटन में शामिल
कर लेता है
तथा इससे घरेलू
पर्यटकों की संख्या में
वृद्धि हो जाती
है. ये घरेलू
पर्यटक पर्यटन उद्योग को
बढावा देने में
अपनी महत्वपूर्ण भूमिका
निभाते है. इसके
अतिरिक्त भारत जैसे गर्म जलवायु वाले
देश में पर्वतीय
स्थल विशेष रूप
से हिमालय प्रदेश
भारतीय पर्यटन में अलग
भूमिका निभाते है. उत्तर भारतीय या
फिर दक्षिण भारत
में निवास करने
वाले लोग सभी
का पर्यटक स्थलों की और विशेष
आकर्षण होता है.
कई छोटे एवं
बड़े पर्वतीय स्थल
चाहे श्री नगर,
नैनताल या दर्जेलिंग
हो सब विशेष
आकर्षण का केंद्र
है. तटीय प्रदेश
और मरुस्थलीय प्रदेश
इत्यादि भारतीय पर्यटन में विशेष
योगदान देते है.
भूगोलिक
प्रदेशो के अतिरिक्त
भारतीय संस्कृति एवं वास्तु
काला पर्यटकों को
विशेष रूप से
आकर्षित करते है.
मुग़ल कालीन स्थापत्य
वास्तु काला से
बने हुए एतिहासिक
स्मारक पर्यटन का महत्वपूर्ण
केंद्र है जैसे
की विश्व प्रसिद्ध
ताज महल, लाल
किला, क़ुतुब मीनार,
बड़ा इमामबाडा इत्यादि.
पूरी के मंदिर,
मीनाक्षी मंदिर एवं वर्तमान
में निर्मित अक्षर
धाम मंदिर इत्यादि
भी बड़ी संख्या
में पर्यटकों को
आकर्षित करते है.
वारणसी, इलहाबाद, गया, लेह, धर्मशाला, तवांग ऐसे कई
अन्य सांस्कृतिक
स्थल
भी पर्यटकों को
अपनी और आकर्षित
करते है.
भारत
मेंपर्यटन के
इतने संसाधन उपलब्ध है
की यदि गिना
भी जाये तो
संख्या खतम ही
न हो. किन्तु
जब विदेशी पर्यटकों
के बारे में
बात होती है
तो हम अपने
आप को काफी
पिछड़ा हुआ पाते
है. अन्तराष्ट्रीय पर्यटन
में हमारी भागीदारी
एक प्रतिशत से
भी कम होती
है. सरकार द्वारा
चलायी जा
रही विभिन्न
परियोजनाए जैसे
असफल सी होती
नज़र आने लगती
है. सरकार
बड़ी परियोजनाओ पर
एक बड़ी संख्या
मे रुपए खर्च
करती है किन्तु
यदि कुछ सुधार
आधारभूत सुविधाओं में भी
किया जाये तो हमे
बड़ी सफलता मिल सकती है. दूसरी ओर पर्यटन उद्योग में दक्षता प्राप्त लोगो की भरी कमी
है. ऐसा नहीं है की भारत में इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है अपितु जागरूगता की कमी
की वजह
से ऐसा है. एक ओर दक्षता प्राप्त कामगारों
की कमी है, दूसरी ओर विभिन्न शिक्षण संस्थानों में चल रहे पर्यटन कोर्स में हजारो सीट्स
खाली पड़ी है. यहाँ स्तिथि बड़ी विचित्र है.
पर्यटन वैसे भी लोगो को बड़ी मात्रा में रोजगार उपलब्ध कराता है. खैर इन सब बातो को अमल में लाया जाये तो पर्यटन
को बड़े स्तर पर विस्तृत कर इसका पूर्ण लाभ प्राप्त किया जा सकता है. अंतत: अतिथि देवो भव: का मूल मन्त्र भी सार्थक हो जायेगा.
अनिल
कुमार सिंह, सहायक प्रवक्ता
पर्यटन
विभाग, गुरु नानक खालसा कॉलेज
करनाल,
हरियाणा
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