Wednesday, 13 August 2025

वारसॉ सम्मेलन

 

वारसॉ सम्मेलन

परिचय

वारसॉ सम्मेलन (आधिकारिक रूप से अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन से संबंधित कुछ नियमों के एकीकरण हेतु सम्मेलन) 12 अक्टूबर 1929 को पोलैंड के वारसॉ शहर में हस्ताक्षरित हुआ और 1933 में लागू हुआ।
यह एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो अंतर्राष्ट्रीय वायु यात्रा में यात्रियों की मृत्यु या चोट, सामान और माल का नुकसान या क्षति, तथा देरी की स्थिति में एयरलाइंस की जिम्मेदारी के नियम तय करती है। इसका उद्देश्य विभिन्न देशों में वायु परिवहन से संबंधित कानूनों में एकरूपता लाना और यात्रियों तथा एयरलाइंस दोनों के हितों की रक्षा करना था।


वारसॉ सम्मेलन क्या है?

वारसॉ सम्मेलन एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन के दौरान दुर्घटना, नुकसान, क्षति या देरी की स्थिति में एयरलाइंस की जिम्मेदारियों और दायित्वों को नियंत्रित करता है। यह निर्धारित करता है—

  • एयरलाइंस की दायित्व सीमा

  • टिकट, सामान रसीद और एयर वेबिल के लिए समान नियम

  • न्यायिक क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) के नियम जिनके तहत मुकदमा दायर किया जा सकता है।

समय-समय पर इसमें संशोधन हुए और बाद में इसे मॉन्ट्रियल सम्मेलन (1999) द्वारा पूरक किया गया, जिसने दायित्व सीमाओं को आधुनिक रूप दिया।


वारसॉ सम्मेलन की आवश्यकता

  1. वायु परिवहन नियमों का मानकीकरण – विभिन्न देशों में एयरलाइन दायित्व संबंधी कानूनों को एक जैसा बनाना।

  2. अंतर्राष्ट्रीय वायु यात्रा का विकास – 1920 के दशक में बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए समान कानूनी ढांचे की जरूरत।

  3. यात्री संरक्षण – दुर्घटना, मृत्यु या माल की हानि/क्षति की स्थिति में उचित मुआवजा सुनिश्चित करना।

  4. एयरलाइन संरक्षण – एयरलाइंस को असीमित या अप्रत्याशित दावों से बचाना।

  5. व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा – अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन में भरोसा पैदा करना।


वारसॉ सम्मेलन के उद्देश्य

  1. दायित्व की परिभाषा – एयरलाइंस की जिम्मेदारी और उसकी सीमाओं को स्पष्ट करना।

  2. दस्तावेजी मानक स्थापित करना – यात्री टिकट, सामान रसीद और एयर वेबिल के लिए समान आवश्यकताएं लागू करना।

  3. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा – कई देशों द्वारा मान्यता प्राप्त एक समान कानूनी मंच तैयार करना।

  4. वायु परिवहन विकास को प्रोत्साहित करना – यात्रियों और एयरलाइंस दोनों को कानूनी निश्चितता प्रदान करना।

  5. मुआवजे की राशि सीमित करना – एयरलाइंस पर अत्यधिक आर्थिक बोझ से बचाने के लिए मुआवजा राशि तय करना।


मुख्य परिणाम / प्रावधान

  1. यात्री की चोट या मृत्यु पर दायित्व – अंतर्राष्ट्रीय यात्रा के दौरान दुर्घटना होने पर एयरलाइन जिम्मेदार होगी।

  2. सामान और माल का दायित्व – खोए, क्षतिग्रस्त या विलंबित सामान/माल के लिए मुआवजा, निर्धारित सीमा तक।

  3. दस्तावेजी आवश्यकताएं – यात्री टिकट, सामान रसीद और एयर वेबिल जारी करना अनिवार्य।

  4. मुआवजा सीमा – मृत्यु/चोट के लिए अधिकतम मुआवजा (शुरुआत में लगभग 1,25,000 प्वाइंकेरे फ्रैंक, बाद में संशोधित)।

  5. साक्ष्य का बोझ – यात्री को यह साबित करना होगा कि नुकसान एयरलाइन की जिम्मेदारी के दौरान हुआ।

  6. न्यायिक क्षेत्राधिकार के नियम – मुकदमा केवल कुछ निश्चित देशों में दायर किया जा सकता है (प्रस्थान देश, गंतव्य देश, एयरलाइन का मुख्यालय आदि)।

  7. भविष्य की संधियों का आधार – मॉन्ट्रियल सम्मेलन (1999) का आधार बना, जिसने दायित्व सीमाओं और प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाया।


निष्कर्ष

वारसॉ सम्मेलन ने अंतर्राष्ट्रीय वायु कानून के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ प्रदान किया, जिसने वायु यात्रा के लिए एक समान, पूर्वानुमानित और संतुलित कानूनी ढांचा तैयार किया। इसने यात्रियों को दुर्घटना, नुकसान या क्षति की स्थिति में उचित मुआवजा सुनिश्चित कर संरक्षण दिया, साथ ही एयरलाइंस को अत्यधिक और अप्रत्याशित दावों से बचाया। विभिन्न देशों में दस्तावेजी और दायित्व संबंधी नियमों के मानकीकरण के माध्यम से इसने वैश्विक एयरलाइन उद्योग के सुरक्षित और संगठित विकास की नींव रखी। यद्यपि बाद में इसे मॉन्ट्रियल सम्मेलन (1999) ने पूरक किया, फिर भी वारसॉ सम्मेलन अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन में विश्वास, सुरक्षा और न्याय को बढ़ावा देने वाला एक ऐतिहासिक मील का पत्थर बना हुआ है।